
25 सितंबर 2025
यूपी। वाराणसी का हुआ डाक घोटाला किसी कलंक से कम नही। भ्रष्टाचार की जड़ें अभी भी गहरी, न्याय की प्रतीक्षा में सैकड़ों परिवार। गंगा की पवित्र नगरी, जहां आस्था और संस्कृति का संगम है, वहां सरकारी तंत्र की नाकामी एक बार फिर सिर उठा रही है। 2018 में कैंटोनमेंट हेड पोस्ट ऑफिस में हुए डाक घोटाले ने सैकड़ों आम नागरिकों के भरोसे को तोड़ा था। लगभग 10 करोड़ रुपये का यह गबन आज भी न्याय के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है, लेकिन छह साल बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नजर नहीं आ रही। यह न केवल एक वित्तीय अपराध है, बल्कि सिस्टम की गहरी सड़ांध का प्रतीक है, जो गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाता है।
यह कहानी शुरू होती है 2013 से, जब डाक विभाग के कुछ कर्मचारियों ने ग्राहकों के बचत खातों, मासिक आय योजना (MIS), पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF) और अन्य योजनाओं पर हाथ साफ कर लिया। फर्जी दस्तावेज, चोरी हुए पासवर्ड और संग्रह एजेंटों की मिलीभगत से करीब 500 से अधिक खाते खाली हो गए। एक बुजुर्ग ने अपनी बेटी की शादी के लिए जमा किए पैसे खो दिए, तो एक विधवा को बुढ़ापे की लाठी छिन गई। अगस्त 2019 में जब खुलासा हुआ, तो प्रारंभिक जांच में 5 करोड़ का नुकसान सामने आया, जो बाद में 10 करोड़ से पार हो गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में यह घोटाला होने से हड़कंप मच गया था। पीएमओ ने तत्काल रिपोर्ट मांगी, और डाक विभाग ने चार कर्मचारियों—रामाशंकर लाल, राजेश कुमार, सुनील यादव और विनय यादव—को निलंबित कर दिया। अक्टूबर 2019 में सहायक डाकपाल बेचन राम की गिरफ्तारी हुई, लेकिन बाकी छह आरोपी आज भी फरार हैं। आर्थिक अपराध इकाई (EOW) को सौंपी गई जांच आज तक ठंडे बस्ते में पड़ी लगती है।
2025 में भी वही पुरानी कहानी 2025 में पहुंचते-पहुंचते यह मामला एक काला अध्याय बन चुका है। हालिया खोजों से पता चलता है कि कोई नई गिरफ्तारी या अदालती फैसला नहीं हुआ। हां, कुछ प्रभावित ग्राहकों ने उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया है—एक मामले में जिला आयोग ने डाकघर को 3 लाख रुपये ब्याज सहित लौटाने का आदेश दिया था। लेकिन बड़े पैमाने पर वसूली? वह तो सपना ही लगती है।बडाक विभाग ने कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (CBS) को मजबूत करने का दावा किया है, लेकिन भ्रष्टाचार की जड़ें सिस्टम की कमजोरियां ही तो हैं। पासवर्ड सिक्योरिटी, ऑडिटिंग और कर्मचारी ट्रेनिंग में लापरवाही व भृष्ट कर्मचारियों ने ऐसे घोटालों को जन्म दिया। देशभर में डाकघरों पर जनता का भरोसा है—गरीबों की बचत से लेकर किसानों की सब्सिडी तक सब कुछ इन्हीं पर निर्भर। लेकिन जब ये संस्थाएं लूट का केंद्र बन जाएं, तो लोकतंत्र की नींव हिल जाती है। समय आ गया है बदलाव का यह घोटाला सिर्फ वाराणसी का नहीं, पूरे देश का मुद्दा है। पश्चिम बंगाल के जमालपुर डाकघर में 2025 में हाईकोर्ट ने सीआईडी जांच के आदेश दिए, तो झारखंड के गुवा में करोड़ों की फर्जी FD का खुलासा हुआ। ये उदाहरण बताते हैं कि भ्रष्टाचार केंद्रीकृत नहीं, बल्कि फैला हुआ है। सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे,डिजिटल ट्रैकिंग को अनिवार्य करें, स्वतंत्र ऑडिटर्स नियुक्त करें और फरार आरोपियों पर राष्ट्रीय स्तर की तलाशी चलाएं।
पीड़ितों के लिए न्याय का रास्ता RTI और उपभोक्ता अदालतें हैं। लेकिन असली बदलाव तब आएगा, जब हम नागरिक चुप न रहें। सोशल मीडिया पर आवाज उठाएं, स्थानीय विधायकों से सवाल करें। याद रखें, भ्रष्टाचार तभी पनपता है जब हमारी चुप्पी उसे पनाह देती है। वाराणसी जैसे पवित्र शहर से शुरूआत हो—एक मजबूत, पारदर्शी सिस्टम का सपना साकार करने का।
क्या आप तैयार हैं इस लड़ाई के लिए? क्योंकि न्याय की जंग में हर आवाज मायने रखती है।
- इंद्र यादव – स्वतंत्र लेखक,भदोही ( यूपी )
indrayadavrti@gmail.com