गुरुग्राम (Ishantimes) । हरियाणा का एक जिला लोक संपर्क अधिकारी अपने ही विभाग के महानिदेशक के निर्णय को ठेंगा दिखाकर वर्ष 2021 से लगातार दबंग हरियाणा समाचार पत्र के खिलाफ मोर्चा खोले बैठा है। नीयत में खोट, पद का दुरुपयोग और लोकतंत्र की रीढ़—स्वतंत्र पत्रकारिता—को झुकाने का यह षड्यंत्र अब खुलकर सामने आ गया है।
समाचार पत्र के संपादक ने मीडिया को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि इस षड्यंत्र की शिकायत राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव, सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग को कर दी गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि तत्कालीन जिला लोक संपर्क अधिकारी सुरेंद्र बजाड़, वर्ष 2021 से योजनाबद्ध तरीके से झूठी रिपोर्टों का पुलिंदा तैयार कर रहे हैं ताकि अखबार को बदनाम किया जा सके और कलम को सत्ता की गुलामी स्वीकार करनी पड़े।

“यह केवल एक अखबार के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला है।” – संपादक
शिकायतकर्ता ने यह भी बताया कि सुरेंद्र बजाड़ ने महानिदेशक की स्पष्ट रिपोर्ट के बावजूद अपने पद का दुरुपयोग करते हुए विभाग को गुमराह किया और लगातार साजिशों का जाल बिछाया। हैरानी की बात तो यह है कि महानिदेशक द्वारा अधिकारी की रिपोर्ट को गलत ठहराने के बावजूद वह अफसर आज भी अपने फैसलों से विभाग को दिशा दे रहा है।
शिकायत में मांगा गया है कि भारतीय दंड संहिता की धाराएं 61, 356, 179, 255, 228 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 और 13(1)(d), साथ ही BNS की धारा 356(1), 356(2) के तहत एफआईआर दर्ज कर इस अधिकारी को कठोरतम सज़ा दी जाए।
सबसे अहम बात —शिकायतकर्ता ने अपने आरोपों की पुष्टि करने वाले 20 ठोस साक्ष्य भी विभाग को सौंप दिए हैं। इन साक्ष्यों में वह जांच रिपोर्ट भी शामिल है जिसमें महानिदेशक द्वारा साफ-साफ जिला अधिकारी की अनुशंसा को अनुचित ठहराया गया है।
इतना ही नहीं, सुरेंद्र बजाड़ के खिलाफ पहले भी 2018 में विभागीय जांच हो चुकी है, जिसमें उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत दोषी पाया गया था (डायरी नंबर 4952/24.05.2018)। बावजूद इसके, अफसरशाही की ढीठी देखिए—वो न जांच से डरते हैं, न विभागीय रिपोर्टों से।
अब सवाल यह है:
क्या विभाग इस बार न्याय करेगा या फिर अफसरशाही की ज़िद के आगे लोकतंत्र फिर एक बार शर्मसार होगा?
क्या पत्रकारिता की स्वतंत्रता सत्ता के गलियारों में गिरवी रख दी जाएगी या दोषियों पर गिरेगा सख़्त कार्रवाई का चाबुक?
“सत्ता की कलम को झुकाने की चाह, लोकतंत्र पर पड़ा फिर एक कलंकित दाग़!”