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मनुष्य का स्वर वह भी प्रकृति का स्वर-वन्दना झा

किसानों को एग्रो फारेस्ट्री पर जोर देना होगा तभी धरती की सेहत ठीक रहेगी-गणवीर धम्मशील

पंचकूला नवम्बर 12(ईशान टाइम्स): पुस्तक मेंले के पांचवे दिन महानिदेशक श्री राज नारायण कौशिक कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के मार्गदर्शन में ‘‘जैविक खेती सुरक्षित एवं स्वस्थ भविष्य का आधार’’ विषय पर विमर्श एवं कार्यशाला का आयोजन किया गया।

पुस्तक मेंले के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ के आई एफ एस अधिकारी गणवीर धम्मशील ने कहा कि अभी के समय में किसानों को एग्रो फारेस्ट्री पर जोर देना चाहिए इससे खेती में पानी और खाद का इस्तेमाल कम होगा प्राकृतिक संसाधन के संचय से न सिर्फ जल बल्कि हमारी धरती की सेहत भी ठीक रहेगी।

विमर्श सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अध्ययन संस्थान की अध्यक्ष प्रो. वन्दना झा ने कहा कि प्रकृति और साहित्य के अन्र्तसम्बन्ध का कोई एक उदाहरण नहीं है उन्होंने रविन्द्र नाथ टैगोर, प्रेमचंद की पूस की रात कहानी का उदाहरण देते हुए कहा कि जो मनुष्य का स्वर है वह भी प्रकृति का स्वर है। इसलिए सारी की सारी कहानियां और सारा स्वर प्रकृति का स्वर है। अतः समय आ गया है कि प्रकृति की रक्षा के लिए साहित्य का लेखन करना होगा।

वरिष्ठ पत्रकार श्री हरवीर ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के समय में जो कृषि ज्ञान है विश्वविद्यालय से निकलकर खेत की मेड़ तक जाना चाहिए । हमारे देश की परंपरा प्रकृति हितैषी की रही है हम ऐसी खेती परंपरा को अपनाये जहां जल, जंगल जमीन की रक्षा हो और मनुष्य समकालीन बिमारियों का शिकार न होना पड़े।

वरिष्ठ पत्रकार अजीत सिंह ने कहा कि आज समाज को जागरूक करने में मीडिया एक बड़ा योगदान है। सोसल मीडिया के जरिये ऐसे आयोजनों का प्रचार-प्रसार होना चाहिए।

कलाकारों से संवाद करते हुए हरियाणा लोक सेवा आयोग की सदस्य सोनिया त्रिखा ने कहा कि मनुष्य को कलायें सृजन की ओर ले जाती हैं। कला का निर्माण होते देखना ऐसा महसूस होता है कि हमारी सभ्यता कैसे विकास की राह पर जा रही है उन्होंने पुस्तक मेंले में सभी स्टालों का भ्रमण किया और एक-एक प्रकाशक से संवाद करते हुए उन्होंने कहा कि आप किताबें बेचने नहीं आये हैं आप हरियाणा की नयी पीढ़ी को ज्ञान से सींचने आये हैं। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक मेला हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी उर्दू भाषाओं का संगम बन गया।

सांस्कृतिक कार्यक्रम में कला एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग के सहयोग से हरियाणवी संस्कृति पर विवाह परंपरा पर आधारित प्रस्तुति दी गई जिसमें हरियाणवी शादी रंगों, संगीत और पुरानी परंपराओं को दिखाया गया।

कार्यशाला की शुरूआत नृत्य साधना स्कूल के कलाकार बेदांग मेहता ने गणेश वंदना, कत्थक नैरिति ढोगरा और उसकी टीम, शुरूआत समिति ने बसुन्धरा बोली नाटक एवं डी ए वी पुलिस पब्लिक स्कूल मधुवन द्वारा हरियाणवी ग्रूप डांस विकल्प रंजन द्वारा फैज की गजल प्रस्तुत की।

दिल्ली से आये वरिष्ठ पत्रकार श्री चन्द्रभूषण ने कहा कि भारतीय समाज में पर्यावरण संकट और प्रदूषण से जुड़ी समस्याओं को अब संवेदना के स्तर पर महसूस किया जाने लगा है लेकिन आम जनता में इसके संचार के देशी मुहावरें का अभाव है। नतीजा यह है कि पर्यावरणीय समस्याओं को कही दूर की चीज मानते हैं लेखकों, कवियों और रंगकर्मियों को यह चुनौती स्वीकार करनी चाहिए और खेती से लेकर बागवानी और वानिकी तक संतुलन कार्य व्यवहार में और रचनाओं में शामिल करना होगा।  

डिप्टी डायरैक्टर एच ई आर सी विशेष रूप से मौजूद थे और उन्होने अपने विचार साझा किये। विमर्श एवं कार्यशाला के सफल संयोजन में डॉ. सुभाष चन्द्र, सुमित्रा रानी, डा. राजेश लाठर, डॉ. विजय लोहान, मंगत राम, इन्दू रानी एस एण्ड एस आर्गैनिक फार्म अहिरका जीन्द का विशेष सहयोग रहा।


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