
मुंबई/नालासोपारा इलाके में वसई क्राइम ब्रांच ने एक 31 साल के युवक नसरुद्दीन खान को देसी पिस्टल और दो जिंदा कारतूस के साथ गिरफ्तार किया। हथियार की कीमत महज 50 हजार रुपये बताई गई, लेकिन जिस आसानी से यह हथियार उपलब्ध हो रहा है, उसकी कीमत समाज के लिए लाखों-करोड़ों में आंकी जा सकती है। सप्लायर कृष्णा चव्हाण भी पकड़ा गया। आरोपी पर पहले से दो आपराधिक मामले दर्ज हैं। मामला शस्त्र अधिनियम के तहत दर्ज हुआ और जांच जारी है। यह कोई पहली घटना नहीं है। महाराष्ट्र हो या उत्तर प्रदेश, बिहार हो या राजस्थान , देसी कट्टा, देसी पिस्तौल अब गांव-कस्बों से लेकर मेट्रो शहरों तक आम हो चुके हैं। एक तरफ पुलिस इसे “सफल कार्रवाई” बताती है, दूसरी तरफ हर हफ्ते इसी तरह की खबरें आती हैं। सवाल यह है कि क्या हम सिर्फ पुलिस की पीठ थपथपाकर अपना कर्तव्य पूरा कर रहे हैं या असल बीमारी की जड़ तक जाना चाहते हैं! देसी हथियारों का कारोबार इतना सस्ता और इतना आसान क्यों हो गया है! मुंगेर, बुरहानपुर, मेरठ, अलीगढ़, खरड़ ,ये नाम अब अवैध हथियार उद्योग के पर्याय बन चुके हैं। एक छोटा सा वर्कशॉप, कुछ लोहे की रॉड, पुराने स्कूटर के पार्ट्स और यूट्यूब ट्यूटोरियल, बस देसी पिस्तौल तैयार! कीमत 15-20 हजार से शुरू, 50-60 हजार तक! डिलीवरी कोरियर से, पेमेंट UPI से। पुलिस पकड़ती है तो नया सप्लायर तैयार। इसकी मांग कौन पैदा कर रहा है! छोटे-मोटे अपराधी जो बैंक डकैती नहीं, मोहल्ले की रंगदारी करते हैं ,जमीन के विवाद सुलझाने वाले “बाहुबली! प्रेम प्रसंग में बदला लेने वाले युवा ! और सबसे डरावनी बात! वो किशोर जो सोशल मीडिया पर “गैंगस्टर लुक” दिखाने के लिए हथियार खरीदते हैं
जब तक हथियार की “डिमांड” रहेगी, सप्लाई अपने आप रास्ता बना लेगी। पुलिस का रोल सराहनीय है, लेकिन यह आग बुझाने जैसा है , बाल्टी से पानी डाल रहे हैं जबकि जंगल की आग लगी है। असली इलाज चाहिए तो जमीनी स्तर पर काम करना होगा! सप्लाई चेन को तोड़ना ,अवैध वर्कशॉप पर लगातार छापे, कच्चा माल (लोहा, बारूद) की सप्लाई रोकना ! मांग को खत्म करना , समाज में हिंसा का ग्लैमराइजेशन बंद करना, फिल्मों-गीतों में बंदूक को “मर्दानगी” का प्रतीक बनाना बंद करना ! युवाओं को रोजगार और सम्मानजनक जीवन देना ,जब हाथ में हथियार की बजाय काम होगा, तब बंदूक की जरूरत खुद कम हो जाएगी
नालासोपारा की यह गिरफ्तारी एक छोटी जीत है। लेकिन अगर हम हर बार सिर्फ ताली बजाकर रह गए तो कल कोई दूसरा नसरुद्दीन, कोई दूसरा कृष्णा फिर पकड़ा जाएगा। और शायद तब बहुत देर हो चुकी होगी। समाज को जगना होगा। पुलिस अकेली नहीं लड़ सकती। हमारे मोहल्ले, हमारे स्कूल-कॉलेज, हमारे घर , यहीं से बदलाव शुरू करना होगा।वरना देसी पिस्तौल की यह खबरें कभी खत्म नहीं होंगी। बस नाम और जगह बदलती रहेंगी।
- Indra yadav
- Correspondent – Ishan Times..🙏




