‘लिट्टी’ गेहूं के ‘आटे’ से बनी होती है, जिसे ‘बैगन’ के भरते के साथ सेंका जाता है, यह ग्रामीण परंपरा का प्रतीक है !

भारत एक ऐसा देश है जहाँ मौसम न केवल प्रकृति को बदलता है, बल्कि लोगों की दिनचर्या, संस्कृति और भोजन को भी गहराई से प्रभावित करता है। ठंड का मौसम,उत्तर में हिमालय की चोटियों पर बर्फबारी से लेकर दक्षिण में हल्की सर्दी तक,भारतीय समाज में एक विशेष उत्साह लाता है। यह मौसम केवल ठिठुरन का नहीं, बल्कि गर्मजोशी, परिवारिक मिलन और पौष्टिक भोजन का प्रतीक है। ठंड में भोजन सिर्फ पेट भरने का माध्यम नहीं रहता; यह स्वास्थ्य की रक्षा, सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक एकता का स्रोत बन जाता है। इस लेख में हम देखेंगे कि ठंड के मौसम में भारतीय भोजन कैसे परंपराओं से जुड़ा है, स्वास्थ्य के लिए क्यों जरूरी है और समाज में कैसे बंधन मजबूत करता है। ठंड में भोजन की आवश्यकता: शरीर और मन की गर्माहट ! ठंड का मौसम शरीर की ऊर्जा खपत बढ़ाता है। वैज्ञानिक रूप से, कम तापमान में शरीर थर्मोजेनेसिस (गर्मी उत्पन्न करने की प्रक्रिया) के लिए अधिक कैलोरी जलाता है। आयुर्वेद में इसे ‘शीत काल’ कहा जाता है, जहाँ वात और कफ दोष बढ़ते हैं, इसलिए गर्म, तैलीय और मसालेदार भोजन की सलाह दी जाती है। भारतीय घरों में यह समझ सहज है,माँ की रसोई से निकलती गाजर का हलवा या सरसों का साग शरीर को ऊर्जा देता है, जबकि ठंडी हवाओं से बचाता है। उत्तर भारत में, जहाँ तापमान शून्य से नीचे चला जाता है, भोजन कैलोरी-घना होता है। पंजाब और हरियाणा में मक्की की रोटी और सरसों का साग एक क्लासिक उदाहरण है। मक्की का आटा ग्लूटेन-फ्री और फाइबर युक्त होता है, जबकि साग में पालक, बथुआ और सरसों की पत्तियाँ विटामिन A, C और आयरन से भरपूर होती हैं। इसे घी में तड़का लगाकर परोसा जाता है, जो ठंड में जोड़ों के दर्द से राहत देता है। राजस्थान की गर्मागर्म दाल बाटी चूरमा या उत्तर प्रदेश की गोंड के लड्डू (ज्वार और गुड़ से बने) ऊर्जा का भंडार हैं। ये व्यंजन न केवल पौष्टिक हैं, बल्कि स्थानीय कृषि पर निर्भर कर पर्यावरण-अनुकूल भी।
दक्षिण भारत में ठंड हल्की होती है, लेकिन भोजन की गर्माहट कम नहीं। केरल में अप्पम के साथ मटन स्टू या तमिलनाडु में रसम और इडली सांभर शरीर को गर्म रखते हैं। रसम में काली मिर्च, इमली और धनिया एंटी-ऑक्सीडेंट्स से भरपूर होते हैं, जो इम्यूनिटी बढ़ाते हैं। पूर्वी भारत में बंगाल की माछेर झोल या बिहार की लिट्टी चोखा ठंड में लोकप्रिय हैं। लिट्टी गेहूं के आटे से बनी होती है, जिसे बैगन के भरते के साथ सेंका जाता है—यह ग्रामीण परंपरा का प्रतीक है। सांस्कृतिक विविधता और मौसमी
भारतीय भोजन की खूबसूराई उसकी विविधता में है। ठंड में त्योहार जैसे लोहड़ी, मकर संक्रांति और पोंगल भोजन को केंद्र में लाते हैं। लोहड़ी पर पंजाब में रेवड़ी, मूंगफली और तिल के लड्डू बांटे जाते हैं,ये तिल और गुड़ से बने, शरीर को गर्म रखने वाले स्नैक्स हैं। मकर संक्रांति पर खिचड़ी, तिल-गुड़ की गजक या दक्षिण में पोंगल (चावल और दाल की खीर) बनाई जाती है। ये व्यंजन कृषि चक्र से जुड़े हैं: संक्रांति फसल कटाई का उत्सव है, जहाँ नई फसल का भोजन देवताओं को चढ़ाया जाता है।
क्षेत्रीय विविधता आश्चर्यजनक है। हिमाचल में ड्राई फ्रूट्स से भरे सिद्दू (भाप में पकाई रोटी) या गुजरात में उंधियू (सर्दियों की सब्जियों का मिश्रण) ठंड में स्टेपल हैं। उंधियू में सुरती पापड़ी, बैंगन और आलू मूंगफली के तेल में पकाए जाते हैं, जो ओमेगा-3 फैटी एसिड प्रदान करता है। ये व्यंजन न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि मौसमी सब्जियों का उपयोग कर पोषण संतुलन बनाते हैं! ठंड में भोजन स्वास्थ्य की ढाल है। मसाले जैसे अदरक, लहसुन, हल्दी और दालचीनी एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण रखते हैं। अदरक की चाय या गुड़ की गर्माहट सर्दी-खांसी दूर करती है। गाजर का हलवा विटामिन A से भरपूर होता है, जो आंखों और त्वचा के लिए फायदेमंद है। घी और ड्राई फ्रूट्स फैट-सॉल्युबल विटामिन्स अवशोषित करते हैं, जो ठंड में कमजोर इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं। आधुनिक पोषण विज्ञान भी सहमत है,ठंड में कार्बोहाइड्रेट और फैट की अधिक जरूरत पड़ती है। लेकिन संतुलन जरूरी है,अधिक घी से कोलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है, इसलिए मॉडरेशन में लें। ग्रामीण क्षेत्रों में ये व्यंजन प्राकृतिक हैं, जबकि शहरी जीवन में फास्ट फूड से दूरी बनानी चाहिए। ठंड का भोजन परिवार को एकजुट करता है। शाम को अलाव के पास बैठकर मूंगफली चबाना या गर्मागर्म जलेबी खाना सामाजिक गतिविधि है। बाजारों में भुने शकरकंद या भुट्टे की खुशबू लोगों को जोड़ती है। गांवों में सामूहिक भोज, जैसे पंजाब की लोहड़ी या दक्षिण का पोंगल, समुदाय को मजबूत बनाते हैं। शहरी अपार्टमेंट्स में भी पड़ोसी गाजर का हलवा बांटते हैं, जो ठंड की उदासी दूर करता है।महिलाएँ रसोई में घंटों बिताती हैं, जो पीढ़ीगत ज्ञान का हस्तांतरण है। दादी की रेसिपी आज भी जीवित हैं। लेकिन आधुनिकता में बदलाव आ रहा है,युवा हेल्दी वर्जन अपनाते हैं, जैसे बेक्ड मक्की की रोटी।
चुनौतियाँ और भविष्य!-ठंड में भोजन की पहुंच सभी तक नहीं। गरीब परिवारों में पौष्टिक भोजन सीमित होता है, जबकि जलवायु परिवर्तन से फसल प्रभावित हो रही है। सतत कृषि और सरकारी योजनाएँ जैसे मिड-डे मील में सर्दियों के व्यंजन शामिल करना जरूरी है! ठंड का मौसम भारत में भोजन को एक उत्सव बनाता है,यह शरीर को पोषण, संस्कृति को जीवंत और समाज को एकजुट करता है। सरसों का साग से लेकर तिल के लड्डू तक, ये व्यंजन हमें याद दिलाते हैं कि भोजन सिर्फ भूख नहीं, जीवन का सार है। इस मौसम में एक गर्मागर्म प्लेट उठाएँ, परिवार के साथ बैठें और भारतीय परंपरा की गर्माहट महसूस करें। आखिर, ठंड में सबसे बड़ी गर्मी तो अपनों के साथ बिताए पलों में छिपी होती है।
- Indra Yadav / ईशान टाइम्स ग्रुप



