
जालौन(उत्तर प्रदेश)। जन संख्या के हिसाब से भारत देश का सबसे बड़ा राज्य है उत्तर प्रदेश, और जहां कानून-व्यवस्था को प्राथमिकता बताने वाली सरकार सत्ता में है, वहां पुलिस तंत्र की स्थिति कितनी दयनीय है, इसका ताजा प्रमाण जालौन जिले की घटना है। कुठौंद थाने के प्रभारी निरीक्षक अरुण कुमार राय ने 5-6 दिसंबर 2025 की देर रात अपनी सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मार ली। इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। संत कबीर नगर के इस मूल निवासी ने, जो समाज की रक्षा के लिए तैनात थे, खुद अपनी जिंदगी क्यों छोड़ दी! यह सवाल न केवल उनके परिवार को सालता है, बल्कि पूरे पुलिस विभाग और सरकारी व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। यह घटना कोई अपवाद नहीं, बल्कि एक बड़ी सामाजिक समस्या का हिस्सा है, जहां पुलिसकर्मी तनाव, अवसाद और सरकारी उदासीनता के शिकार हो रहे हैं। क्या योगी आदित्यनाथ सरकार, जो ‘बुलडोजर राज’ और ‘कानून का राज’ का दावा करती है, अपने ही रक्षकों की रक्षा करने में विफल हो रही है! घटना की हृदयविदारक सच्चाई है यह एक अधिकारी का अंतिम फैसला! यह दुखद घटना कुठौंद थाने में घटी, जहां गोली की आवाज ने साथी सिपाहियों को दौड़ाया। अरुण कुमार राय खून से लथपथ मिले। उन्हें तुरंत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, फिर उरई मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया। पुलिस अधीक्षक डॉ. दुर्गेश कुमार और अपर पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार वर्मा मौके पर पहुंचे, लेकिन जांच के बावजूद मौत को टाला नहीं जा सका। परिवार को सूचना दी गई, लेकिन अब उनके लिए जिंदगी का क्या मतलब बचा! यह सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं; यह पुलिसकर्मियों के दैनिक संघर्ष की झलक है। लंबी ड्यूटी, पारिवारिक दबाव, और कार्यस्थल की चुनौतियां उन्हें अंदर से तोड़ रही हैं। हालांकि, यह घटना अकेली नहीं है। हाल ही में सीतापुर में पीएसी कर्मी हिमांशु ने ड्यूटी के दौरान आत्महत्या की! कानपुर देहात में युवक और किशोरी के शव मिले, जिन्हें पुलिस आत्महत्या मान रही है। रामपुर में सेवानिवृत्त लैब टेक्नीशियन की मौत को पुलिस आत्महत्या बता रही है, जबकि परिवार हत्या का आरोप लगा रहा है। ये घटनाएं बताती हैं कि उत्तर प्रदेश में आत्महत्याओं का सिलसिला थम नहीं रहा। आंकड़ों का काला सच,बढ़ती आत्महत्याएं और सरकारी दावे अलग ही रहती है! राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े इस समस्या की गहराई दर्शाते हैं। 2023 में भारत में कुल 1,71,418 ,आत्महत्याएं दर्ज हुईं, जो 2022 से 0.3% अधिक हैं, 2022 में यह संख्या 1,71,000 थी, जो 2018 से 27% बढ़ी है।6cc301 उत्तर प्रदेश में आत्महत्याओं का हिस्सा देश का 10% है, जबकि राज्य की आबादी 17% है। पुलिसकर्मियों में यह समस्या और गंभीर है। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों,(सीएपीएफ) में सीआरपीएफ में 2018 में 36 आत्महत्याएं हुईं, जो 2021 में 57 पहुंच गईं। सीआईएसएफ में 2024 में आत्महत्या दर 9.87 प्रति लाख हो गई, जो 2023 के 16.98 से कम है, लेकिन राष्ट्रीय दर 12.4 प्रति लाख से ऊपर है। उत्तर प्रदेश पुलिस दावा करती है कि जनवरी 2023 से अप्रैल 2025 तक 875 आत्महत्याओं को रोका गया।e96cbd यह सराहनीय है, लेकिन पर्याप्त नहीं। 2019 में यूपी में कम से कम 19 पुलिसकर्मियों ने आत्महत्या की। के बीच भारत में 597 पुलिस अधिकारियों ने जान दी। प्रमुख कारण: पारिवारिक समस्याएं (31.9%), बीमारी, कार्यस्थल तनाव, प्रेम प्रसंग। सरकार ने 2019 में योजना बनाई, मेटा के साथ सहयोग किया, लेकिन क्या यह प्रभावी है! सीआईएसएफ की तरह सक्रिय प्रयास यूपी पुलिस में क्यों नहीं!कारणों की जड़ को ज्ञानी समझना नही चाहते है,वो बड़े लोग है! सरकारी उदासीनता और सिस्टम की कमियां ही मूल कारण है।पुलिसकर्मी 12-16 घंटे की ड्यूटी, कम वेतन, राजनीतिक हस्तक्षेप, भ्रष्टाचार और संसाधनों की कमी से जूझते हैं। कम स्टाफ, पुराने हथियार, कोई काउंसलिंग,ये सब अवसाद को बढ़ावा देते हैं। हथियार आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य सहायता नहीं। परिणाम,जहर, फांसी, जलना, गोली। सरकार राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को मजबूत क्यों नहीं करती! उत्तराखंड, दादरा एवं नगर हवेली, यूपी में आत्महत्या दर सबसे तेज बढ़ी। ‘स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2025’ में यूपी पुलिस की स्थिति पर सवाल उठाए गए हैं। योगी सरकार कानून-व्यवस्था की चैंपियन है, लेकिन पुलिस सुधार कहां!राजनीतिक प्राथमिकताएं चुनाव, रैलियां हैं; पुलिसकर्मी आंकड़े बनकर रह जाते हैं। टूटता विश्वास और परिवारों का दर्द ,यह समस्या पुलिस तक सीमित नहीं है यह समाज पर असर डालती है। अच्छे अधिकारी खोने से अपराध बढ़ता है, विश्वास टूटता है। पुलिस की छवि पहले से खराब,भ्रष्टाचार, राजनीतिक दासता। अरुण कुमार के परिवार का दर्द कौन सुनेगा [ और सुनने वाला कौन है,होता कौन है ] बच्चे बिना पिता, माता-पिता बिना सहारे। सीतापुर की घटना में परिजनों का हड़कंप। आम आदमी सोचता है,अगर रक्षक असुरक्षित, तो हम सुरक्षित कैसे! मानसिक!स्वास्थ्य अब राष्ट्रीय संकट है। महिलाओं, युवाओं, किसानों में आत्महत्याएं बढ़ रही हैं, लेकिन पुलिस जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में उपेक्षा क्यों !बदलाव की जरूरत ज्ञानी सरकार, ठोस कदम और सामाजिक जागरूकता की! सरकार को पुलिस बैरकों में काउंसलिंग सेंटर, नियमित चेक-अप, कार्यभार कम करना अनिवार्य बनाना चाहिए। सीआईएसएफ की तरह 40% कमी लाई जा सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर नीति, एनसीआरबी डेटा पर आधारित सुधार। समाज को भी जागना होगा! पुलिसकर्मियों को सम्मान दें, उनके दर्द समझें। अरुण कुमार राय की मौत चेतावनी है। अगर सरकार नहीं जागी, तो त्रासदियां बढ़ेंगी। श्रद्धांजलि देते हुए मांग! पुलिस सुधार लागू करो, मानसिक स्वास्थ्य प्राथमिकता बनाओ। अन्यथा, समाज का यह चक्रव्यूह टूटेगा नहीं, बल्कि मजबूत होगा।





