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विश्व स्तरीय सहकारी विश्वविद्यालय स्थापित होने से कृषि, उर्वरक, दुग्ध उत्पादन, बैंकिंग क्षेत्र में सहकारिता अभियान को बल मिलेगा:सुभाष बराला

देश के किसानों, कामगारों, मछुआरों और महिलाओं को समुचित प्रतिनिधित्व और प्रोत्साहन मिलेगा: बराला

नई दिल्ली 2अप्रैल (ईशान टाइम्स)।राज्यसभा सांसद सुभाष बराला ने त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय विधेयक, 2025 पर राज्यसभा में चर्चा में भाग लेते हुए इस विधेयक को स्वाधीन भारत के 75 साल के इतिहास में सहकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना जैसे विषय को लेकर पहला विधेयक बताया। उन्होंने कहा कि इससे पहले सहकारिता को अपेक्षित महत्व नहीं दिया गया था। यह विधेयक 26 मार्च 2025 को लोक सभा द्वारा पहले ही पारित किया जा चुका है।
राज्यसभा सांसद सुभाष बराला ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में और गृह मंत्री एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की दूरदृष्टि के चलते इसके महत्व को समझा गया और वर्ष 2021 में इसे एक मामूली विभाग के स्थान पर स्वतंत्र मंत्रालय का दर्जा प्रदान किया। सांसद ने कहा कि विधेयक के शीर्षक का पहला शब्द अर्थात् त्रिभुवन का उल्लेख ही सरकार की उस सकारात्मक सोच को दर्शाता है कि केंद्र सरकार स्वतंत्रता सेनानी और भारत में सहकारी आंदोलन के जनक त्रिभुवनदास काशीभाई पटेल के प्रति कृतज्ञता का भाव रखती है। 
चर्चा में भागीदारी करते हुए राजसभा सांसद ने कहा कि इस सभा के लिए भी यह बहुत गौरव की बात है कि त्रिभुवन दास काशीभाई पटेल 1967 से 1974 के बीच दो बार राज्य सभा के सदस्य रहे। उन्हें असाधारण समाज सेवा के लिए 1963 में रमन मैगसेसे पुरस्कार और 1964 में पदम भूषण पुरस्कार से भी नवाजा गया। उन्होंने कहा कि श्री त्रिभुवन दास पटेल ने ही वर्गीज कुरियन और एचएम दलाया के साथ मिलकर भारत में श्वेत क्रांति को सफल बनाया। सरदार पटेल और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री उनके प्रशंसकों में शामिल रहे हैं। उनके द्वारा स्थापित अमूल जैसी सहकारी संस्था की गिनती आज विश्व की सर्वोत्तम सहकारी संस्थाओं में होती है।
राज्यसभा सांसद ने कहा कि सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य के अनुसार, त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के पश्चात प्रतिवर्ष 8 लाख पेशेवरों को प्रशिक्षण प्रदान करेगा, जो संख्या और गुणवत्ता दोनों के मामले में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लेकर आएगा। अब तक सहकारी शिक्षण संबंधी बाजार की मांग के हिसाब से भारत की स्थिति अफ्रीका के तंजानिया और कीनिया से भी बदतर थी। दूसरी ओर, कनाडा, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जर्मनी तथा चीन जैसे सभी देशों में अनेक प्रतिष्ठित सहकारी विश्वविद्यालय दशकों पहले से कार्यरत हैं। अपने उद्देश्य के अनुरूप, यह विधेयक देश के लिए सहकारिता से समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा।
इस विधेयक का तकनीकी दृष्टि से विश्लेषण का जिक्र करते हुए राज्यसभा सांसद ने कहा कि एक व्यापक और दुरुस्त कानून बनाने की शुरुआत की गई है। सांसद सुभाष बराला ने कहा कि सहकारिता विश्वविद्यालय अपने उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए सहकारी समितियों, उद्योग भागीदारों, सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ भी सहयोग करेगा। 
उन्होंने कहा कि इस बहुप्रतीक्षित विधेयक के पारित और लागू होने से ग्रामीण क्षेत्र में नवाचार और क्षमता निर्माण को अभूतपूर्व बल मिलेगा। देश में सहकारी क्षेत्र के लिए पर्याप्त मात्रा में पेशेवर और प्रशिक्षित कार्यबल उपलब्ध होगा, जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बहुमूल्य मानव संसाधन सिद्ध होगा। राज्यसभा सांसद सुभाष बराला ने कहा कि एक विश्व स्तरीय सहकारी विश्वविद्यालय स्थापित होने से कृषि, उर्वरक, दुग्ध उत्पादन, बैंकिंग क्षेत्र में सहकारिता अभियान को बल मिलेगा। देश के किसानों, कामगारों, मछुआरों और महिलाओं को समुचित प्रतिनिधित्व और प्रोत्साहन मिलेगा। ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और सहकारी क्षेत्र को नई पहचान मिलेगी और देश की अर्थव्यवस्था को नई गति मिलेगी।

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