
भारत ! घर-गृहस्थी को संभालने और सजाने-संवारने से लेकर पत्नी और मां के रूप में महिलाओं के समर्पण भाव का कोई विकल्प नहीं है । पुरुष प्रधान समाज महिलाओं के बिना जीवन जीने का कितना भी दंभ भर लें परन्तु महिलाओं के बिना वह कभी पूर्ण नहीं हो सकता । महिलाएं घर-गृहस्थी का आधार स्तम्भ हैं इनके बिना घर की स्थिति को सुदृढ़ रख पाना मुश्किल है । पति , बच्चों और परिवार के बड़े-बुजुर्गों की सेवा सुश्रुषा करने और हर संभव उन्हें खुशी देने के लिए तत्पर रहने वाली महिलाएं अपने कर्तव्यों में इतनी लीन रहती हैं कि वे खुद अपनी खुशियों को तिलांजलि दे देती हैं । ऊषाकाल से देर रात तक घर के काम-काज में लगी रहने वाली महिलाओं को घर की खुशियों के सामने आराम करना भी मुनासिब नहीं होता और अगर यही महिलाएं नौकरीपेशा हैं तो इनकी ज़िम्मेदारियां और भी बढ़ जाती हैं । एक तरफ घर-परिवार की जिम्मेदारी और दूसरी तरफ नौकरी का संवैधानिक अधिकार , दोनों में तालमेल बैठा कर चलना महिलाओं की अद्भुत क्षमता का परिचायक है । एक तरफ जहां महिलाएं अपने व्यवहार , आचरण और कर्त्तव्यपरायणता से पति , बच्चे और परिवार के सदस्यों का बखूबी ख्याल रखती हैं तो वहीं दूसरी तरफ अपनी क्षमता और कार्यकुशलता से कार्यस्थल पर अपनी निर्धारित लक्ष्य पूरा करती हैं । त्याग और समर्पण की अद्भुत मिसाल कायम करने वाली महिलाओं की नैसर्गिक प्रतिभा का लोहा समाज मानने को मजबूर हो जाता है ।
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि घर , समाज और देश की प्रगति निश्चित रूप से बहन-बेटियों और महिलाओं की सम्मान और सुरक्षा पर ही केंद्रित है, इसके साथ-साथ उनके मौलिक अधिकारों का संरक्षण भी सामाजिक परिवर्तन के लिए आवश्यक है । घर-परिवार और समाज के लिए अपना सर्वस्व समर्पण करने वाली महिलाओं की सामाजिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं है जितनी की वे हकदार हैं । घर-परिवार के लिए खुद को समर्पित करने वाली महिलाओं को हर समय उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है, उन्हें अपनी मान-मर्यादा और सुरक्षा के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है । जिस पति और परिवार को खुशियां देकर उन्हें प्रसन्न रखती हैं, वहां भी उन्हें प्रताड़ित और तिरस्कृत किया जाता है । भारत में घरेलू हिंसा का ग्राफ कुछ ज्यादा ही है । किसी महिला का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक, मनोवैज्ञानिक या यौन शोषण किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाना जिसके साथ महिला के पारिवारिक रिश्ते हैं, घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है । यह हिंसा और दुर्व्यवहार के अन्य रूपों के माध्यम से एक रिश्ते में नियंत्रण और भय की स्थापना करता है। यह हिंसा शारीरिक हमला, मनोवैज्ञानिक शोषण, सामाजिक शोषण, वित्तीय शोषण या यौन हमला का रूप ले सकती है । घरेलू हिंसा को रोकने के लिए कानूनी परिभाषाएं निर्धारित की गई हैं । “घरेलू हिंसा के विरुद्ध महिला संरक्षण अधिनियम की धारा, 2005” के अनुसार, “प्रतिवादी का कोई अनैतिक व्यवहार, भूल या किसी और को काम करने के लिए नियुक्त करना, घरेलू हिंसा में माना जाएगा। “विभिन्न कानूनी धाराओं के अनुसार घरेलू हिंसा अलग-अलग समूहों में परिभाषित किया गया है । घरेलू महिला को क्षति पहुँचाना या जख्मी करना या पीड़ित को स्वास्थ्य, जीवन, अंगों या हित को मानसिक या शारीरिक तौर से खतरे में डालना या ऐसा करने की नीयत रखना और इसमें शारीरिक, यौनिक, मौखिक और भावनात्मक और आर्थिक शोषण शामिल है, दहेज या अन्य संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की अवैध मांग को पूरा करने के लिए महिला या उसके रिश्तेदारों को मजबूर करने के लिए यातना देना, नुकसान पहुँचाना या जान जोखिम में डालना, पीड़ित या उसके निकट सम्बन्धियों को धमकी देना, पीड़ित को शारीरिक या मानसिक तौर पर घायल करना इत्यादि घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है ।
सुरक्षा की दृष्टि से नौकरीपेशा महिलाओं की कार्यस्थल पर सुरक्षा के लिए “कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडन के विरुद्ध अधिनियम” (द सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ विमेन एट वर्कप्लेस-2013) घरेलू हिंसा अधिनियम (प्रोटेक्शन ऑफ विमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वॉयलेंस 2005) हिंदू उत्तराधिकार कानून 2005 और दहेज प्रथा निवारण कानून (डाउरी प्रॉहिबिशन एक्ट 1961) आदि कानून भी लागू किया गया है ।
महिलाओं के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों के बारे में ‘थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन’ के वार्षिक सर्वेक्षण में भारत को पहला दर्जा दिया गया है। जिन मामलों पर विचार किया गया, उनमें यौन हिंसा की श्रेणी में भारत ने सबसे बदहाल देशों में पहले स्थान पर है। गैर-यौन हिंसा की श्रेणी में भारत 10 शीर्ष देशों में तीसरे स्थान पर रहा है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा राष्ट्रीय महिला आयोग और भारत के अनेक विशेषज्ञों ने इस सर्वेक्षण के नतीजों को पक्षपातपूर्ण करार दे कर नकार दिया है , लेकिन इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा देश की बड़ी समस्याओं में से एक है, जिसका तत्काल हल खोजना अत्यंत आवश्यक है। महिलाओं की सामाजिक स्थिति की समीक्षा करने वाले लोगों को जागरूक होकर महिलाओं की पारिवारिक और सामाजिक स्थिति पर भी विचार करना चाहिए। परिवार की मजबूती के लिए जिस आधार स्तम्भ की जरूरत होती है वह और कोई नहीं बल्कि घर देवियां ही हैं । पति के साथ सात फेरे लेकर सात जन्मों तक का साथ निभाने का वचन लेने वाली महिलाएं निश्चित रूप उचित प्यार और सम्मान का हकदार हैं, उनकी सुरक्षा का दायित्व पति, परिवार और समाज पर समान रूप से है । हालांकि महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए कानूनी सलाह और सहयोग का भी प्रावधान है । पीड़ित कानून के तहत किसी भी राहत के लिए पीड़ित संरक्षण अधिकारी से संपर्क कर सकती हैं और निशुल्क क़ानूनी सहायता की मांग कर सकती हैं। पीड़ित भारतीय दंड संहिता के तहत क्रिमिनल याचिका भी दाखिल कर सकती है, इसके तहत प्रतिवादी को तीन साल तक की जेल हो सकती है, इसके लिए पीड़ित को गंभीर शोषण सिद्ध करने की आवश्यकता है l
यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर जीवन की गाड़ी के दो पहिए पति-पत्नी को घर- गृहस्थी सजाने-संवारने में ऐसा क्या मतभेद हो जाता है कि उन्हें कानून की शरण में जाना पड़ता है ? यह व्यावहारिक चिंतन और ज्ञान टिकी एक ऐसी स्थिति है जिसे आपसी विचार-विमर्श और सहमति से सुलझाया जा सकता है । और फिर किसी भी महिला के पति और उसके परिवारवालों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो औरत उनके सुख- सुविधाओं का ख्याल रखने के लिए अपना सुख का त्याग करती है, उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाए ? समाज के रहनुमाओं को यह भी संज्ञान में लेना चाहिए कि उनके घर की बहन-बेटी भी किसी अन्य घर की चहारदीवारी में रहने जाएगी । जो सम्मान और अधिकार हम अपनी बहन- बेटियों को देते हैं वहीं मान-सम्मान अपने घर की स्त्रियों को देने से घर स्वर्ग बन सकता है । नित्य प्रतिदिन होने वाले घरेलू झगड़ों का परिणाम वैवाहिक जीवन के विघटन के रूप में सामने आता है । समाज और परिवार का दायित्व बनता है कि परिवार की सुख-शांति, खुशहाली और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए महिलाओं की मान-सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करें ।
- dr. r.c yadav / Independent Journalist


