आज पूरे बिहार, उत्तर प्रदेश या झारखंड में जितनी भी भूमिहार बाहुल्य गाँव है वहाँ पर वर्तमान में जितनी भी दलित बस्तियाँ, स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, मठ, मंदिर आज से लगभग 65 वर्ष पहले जिस ज़मीन पर बने है वो सब किसी न किसी भूमिहार के ही नाम का मिलेगा, आप चाहो तो कचहरी जाकर उनका खातियाँन या कुर्सिनामा निकलवा कर देख लो। ये बात उस समय की है जब 1951 में संत बिनोवा भावे ने भूदान नामक एक मुहिम चलाया था उस मुहिम के अन्तर्गत लोगो से ख़ासकर भूमिहार समाज आग्रह किया था की अगर भूमिहार जमीदार देश को आगे बड़ाना चाहता है तो दलित व अन्य पिछड़ो को बसने के लिए अपनी ज़मीन दान करो। स्कूल, अस्पताल, यूनिवर्सिटी, मठ, मंदिर के लिये भी अपनी ज़मीन दान करो क्योंकि सबसे बड़ी जमीदारी भूमिहार के पास थी और भूमिहार समाज ने उनके आग्रह को स्वीकार किया।
आप को जान कर हैरानी होगी की पूरे झारखंड, बिहार व उत्तर प्रदेश में 72 लाख एकड़ ज़मीन भूमिहार समाज ने देश उत्थान हेतु दान कर दिया। इससे ये साबित होता है कि ये समाज कर्ण से भी बड़ा दानी है। वर्तमान में हमारे भूमिहार समाज के नेताओ की चुप्पी है जो हमारा ही वोट लेकर सदन में पहुँचता है और उसी के सामने हमारे भूमिहार समाज के लोगो को कमजोर करने का षड्यंत्र रचा जाता है, भूमिहार समाज को शोषक, सामंती, मनुवादी कहा जाता है और वो चुप चाप अपने निजी स्वार्थ हेतु सुनता रहता हैं और उसी पार्टी में दुबका रहता है। अपने भूमिहार समाज के नेताओ की देंन है जो आज हम पोषक से शोषक, झूठा, ठग, मक्कार बन गए है। जो भी भूमिहार उद्योगपति है उनको नष्ट किया जा रहा है और ये लोग चुप चाप तमाशा देख रहे है।
दिग्विजय राय (बनारस)